शास्त्र विरुद्ध साधना और नास्तिकता
शास्त्र विरुद्ध साधना :-
साधना अर्थात भक्ति करना जैसा कि हर इंसान अपने इष्ट देव की भक्ति करता है लेकिन वास्तव में भक्ति किसे कहते हैं किस भगवान की भक्ति करनी चाहिए जिससे हमें पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति हो सके।।
जैसे कोई धर्म हो हिंदू हो मुस्लिम हो सिख या इसाई हो सभी धर्मों के शास्त्र ही प्रमाण है इसके अलावा संतो, सूफी तथा महापुरुषों की बोली हुई वाणी भी प्रमाणित करती हैं वहीं प्रमाणित भक्ति हैं शास्त्र अनुसार भक्ति है
गीता अध्याय 16 श्लोक 23 - 24 में कहा है कि शास्त्रविधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं अर्थात् जिन देवताओं पितरों , यक्षों , भैरों - भो । भक्ति करते हैं और मनकल्पित मन्त्रों का जाप करते हैं , उनको न तो कोई सुख होता है , न कोई सिद्धि प्राप्त होती है तथा न उनकी गति अर्थात् मोक्ष होता है । इससे तेरे लिए हे अर्जुन ! कर्तव्य ( जो भक्ति करनी चाहिए ) और अकर्तव्य ( जो भक्ति न करनी चाहिए ) की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं । गीता अध्याय 17 श्लोक 1 में अर्जुन ने पूछा कि हे कृष्ण ! ( क्योंकि अर्जुन मान रहा था कि श्री कृष्ण ही ज्ञान सुना रहा है , परन्तु श्री कृष्ण के शरीर में प्रेत की तरह प्रवेश करके काल ( ब्रह्म ) ज्ञान बोल रहा था जो पहले प्रमाणित किया जा चुका है ) । जो व्यक्ति । शास्त्रविधि को त्यागकर अन्य देवताओं आदि की पूजा करते हैं , वे स्वभाव में कैसे । होते हैं ? गीता ज्ञान दाता ने उत्तर दिया कि सात्विक व्यक्ति देवताओं का पजन । करते हैं । राजसी व्यक्ति यक्षों व राक्षसों की पूजा तथा तामसी व्यक्ति पूजा करते हैं । ये सब शास्त्रविधि रहित कर्म हैं । फिर गीता अध्याय 17 श्लोक 5-6 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित केवल मनकल्पित घोर तप को तपते है वे दम्भी ( ढोंगी) है और शरीर के कमलों में विराजमान शक्तियों को तथा मुझे भी क्रश करने वाले राक्षस स्वभाव के अज्ञानी जान ।।
कबीर, माई मसानी सेढ शीतला भैरव भूत हनुमत।
परमात्मा से न्यारा रहे,जो इनको पूजंत।।
राम भजे तो राम मिले,देव भजे सो देव।
भूत भजे सौ भूत भवै, सुनो सकल सुर भेव।।"
शास्त्र के अनुसार भक्ति किसके पास है :-
गीता जी अध्याय 8 श्लोक 1 के प्रश्न का उत्तर गीता ज्ञान दाता श्लोक नं . 3 में दिया है कि वह " परम अक्षर ब्रह्म " है । फिर अध्याय 8 के ही श्लोक 5 तथा 7 में तो अपनी भक्ति करने को कहा है ।
फिर श्लोक 8 , 9 , में परम अक्षर ब्रह्म का भक्ति करने की राय दी है । गीता जी अध्याय 4 श्लोक 5 अध्याय 2 श्लोक 12 में , अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि यदि मेरी भक्ति करेगा तो जन्म - मृत्यु तेरे भी सदा बने रहेंगे और मेरे भी । फिर गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई कि जो व्यक्ति संसार रूपी वृक्ष के सर्व भाग मूल सहित तत्व से जानता है , ( सः वेदवित ) वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी सन्त है । फिर अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी सन्त मिलने के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद को खोजना चाहिए , जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी जन्म - मृत्यु के चक्र में नहीं आते । गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में उसका वर्णन किया है कि अर्जुन तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा । उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त हो जाएगा । यह परम शान्ति है क्योंकि साधक को पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता । सदा के लिए अमर लोक ( सनातन परम धाम ) में निवास करेंगे । अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखिए साधना टीवी पर सत्संग हर रोज शाम 7:30 से 8:30 तक।।
नास्तिकता:-
नास्तिकता का अर्थ है मतलब किसी भगवान में विश्वास नहीं होना जैसे कि चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ था तो आज पूरा चीन नास्तिक हो चुका है नास्तिक होने के पीछे सबसे अहम कारण यही होता है कि हम शास्त्र विरूद्ध भक्ति करते हैं जिससे हमें पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है जिसके कारण से हमारा भगवान के प्रति विश्वास उठ जाता है और हम यही सोचते हैं कि जो हो रहा है वह सही हो रहा है हम ही भगवान है हम जो कर रहे हैं वही सही है लेकिन यह सब मनमाना आचरण है वास्तव में भगवान तो होता ही है जिसके बारे में शास्त्र प्रमाण है नास्तिकता के कारण आज मनुष्य पतन की ओर जा रहा है तो आइए जानिए वास्तव में पूर्ण परमात्मा कौन है जो सबका रचनहार है आखिर वह पूर्ण ब्रह्म कौन है जानने के लिए आप अवश्य देखिए संत रामपाल जी महाराज के द्वारा बताई हुई शास्त्र अनुसार भक्ति के बारे में अधिक जानकारी के लिए
www.jagatgururampalji.org
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