कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं
#GodKabir_Comes_In_4_Yugas
कबीर परमेश्वर जी चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने के लिए आते हैं।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं।
सतयुग में कविर्देव (कबीर साहेब) का सत्सुकृत नाम से प्राकाट्य“
पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि को सतज्ञान समझाया था।
पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविर्देव) सतयुग में सतसुकृत नाम से स्वयं प्रकट हुए थे।
श्री मनु महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था। उन्होंने ज्ञान को सत न जानकर श्री ब्रह्मा जी के द्वारा निकाले वेदों के निष्कर्ष पर ही आरूढ़ रहे। इसके विपरीत परमेश्वर सतसुकृत जी का उपहास करने लगे और उनका उर्फ नाम वामदेव निकाल लिया।
सतयुग में परमेश्वर कविर्देव जी जो सतसुकृत नाम से आए थे उस समय के ऋषियों व साधकों को वास्तविक ज्ञान समझाया करते थे। परन्तु ऋषियों ने स्वीकार नहीं किया। सतसुकृत जी के स्थान पर परमेश्वर को ‘‘वामदेव‘‘ कहने लगे।
परमेश्वर कबीर जी त्रेतायुग में ऋषि मुनीन्द्र जी के रूप में लीला करने आए तब हनुमान जी से मिले। तथा सतलोक के बारे में बताया हनुमानजी को विश्वास हुआ कि ये परमेश्वर हैं। सत्यलोक सुख का स्थान है। परमेश्वर मुनीन्द्र जी से दीक्षा ली। अपना जीवन धन्य किया। मुक्ति के अधिकारी हुए।
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर की दया से पांडवों का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ।
पांडवों की अश्वमेघ यज्ञ में अनेक ऋषि, महर्षि, मंडलेश्वर उपस्थित थे यहां तक कि भगवान कृष्ण भी उपस्थित थे फिर भी उनका शंख नहीं बजा।
कबीर परमेश्वर ने सुदर्शन सुपच वाल्मीकि के रूप में शंख बजाया और पांडवों का यज्ञ संपन्न किया।
गरीबदास जी महाराज की वाणी में इसका प्रमाण है
"गरीब सुपच रुप धरि आईया, सतगुरु पुरुष कबीर, तीन लोक की मेदनी, सुर नर मुनि जन भीर"
कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।
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